उदय दिनकर आँगन में , धरती यूँ इठलाए ..
है स्वच्छ निर्मल ये पल , पवने मंद सरसाए ..आज रवि का रवि को प्रणाम , जीवन आस दिखाए ..
बरसे आनंद जीवन में , कलियाँ खिल खिल जाए ..
पंछी कोयल और चिडियाँ , अपना गान सुनाए ..
ठंडी अपना रंग जमाए , ठिठुर ठिठुर सब जाए ..
लगा अलाव सब संग बैठे , अग्नि ठण्ड रमाए ..
" जितेन्द्र " कहे सुप्रभात तुमसे , कुछ बात तुम्हे बताए ..
तराना समझो अफसाना समझो , अपना राग सुनाए ..!
--- जितेन्द्र भाटी
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